होती हो जब तुम आास पास, पिघलता हुँ मैं
धीमी आँच पे चाय सा, फिर उबलता हुँ मैं
पत्ती सा जो धीमे धीमे, रंग देती हो तुम
अदरक सा वो हल्का खुशबू, फिर उगलता हूँ मैं !
तनहा रहूँ, या रहूँ किसी भीड में
ढूढें है तुमको दिल, हर सडक में
नुक्कड पे वो तेरे घर के नीचे, फिर बस जाता हूँ मैं
धीमी आँच पे चाय सा, फिर उबलता हुँ मैं !
हो सर्द मौसम, या हो बारीश की नमी
चाहे हो धूप में, वो पानी की कमी
जब थकती हो तुम, तो फिर मचलता हूँ मैं
धीमी आँच पे चाय सा, फिर उबलता हुँ मैं !
अलमारी में रखे इस कप से, लड रहा हूँ मैं
ताकी छू लूँ तेरे लब मैं भी, के जल रहा हूँ मैं
सोचूँ यही के, कहती हैं तेरी आँखे क्या?
चाय सा फिर छलक के, संभल ता हूँ मैं !
मत जाओ सोने को अब तुम, के फिर जल रहा हूँ मैं
थोडा करो इंतजार, के उबल रहा हूँ मैं
एक घूँट जो पी लोगी मुझको, के तर जाऊँगा मैं
धीमी आँच पे चाय सा, फिर उबल जाऊँगा मैं !
Comments
Post a Comment