ये कैसा विवाद है, कैसा ये प्रतिवाद है
साहित्य के नाम पर फैल रहा,
कैसा ये संबाद है
सहनशीलता घटती जा रही
कर रहे प्रलाप है
है शब्दों कि रक्षा जिनके हातों
कर रहै वही अवसाद है
जिसने उनको ये मान दिया
और जिसने ये सम्मान किया
उस साहित्य को सोचो उन्होने
कैसे ये बदनाम किया
कैसा ये विषाद है
और कैसा ये शय-मात है
साहित्य सा राजा हार रहा
संतरी ये लेखक अज्ञात है
कहते हैं दादरि कि घटना से
भारत जग में बदनाम हुई
कलबुर्गी - दाबोलकर के हत्या से
लेखन कि आजादी हार गयी
पर सोचो पहले भी तो यहाँ
तसलीमा “मुन्नी” सि बदनाम हुई
हाँ समझौता और गोधरा घटा
और बाबरी में घमासान हुई
सिखों का कत्ले आम हुआ
कश्मीर में पण्डितों कि जान गयी
क्या घोटालों से भारत जग में
कभी नहीं बदनाम हुई?
तब कहाँ थी तुम्हारी चेतना
क्योँ ना तब प्रतिवाद किया
लौटाना ही था सम्मान तो फिर
क्योँ इसको स्वीकार किया?
मैं छोटा सा लेखक मुझको
साहित्य का तो ज्ञान नहीं
पर मुझको भी यह दीख रहा
साहित्य का ये तो सम्मान नहीं
पर तुम तो हो साहित्य के प्रहरी
तुमने कैसे ये मान लिया?
लौटा दिया सम्मान जो तुमने
क्या आजादी तुमने जान लिया?
झुठा ये विवाद छोडो
शब्दों को शब्दों से जोडो
प्रतिवाद है जो तुमको करना
कलम से जनता को झंझोरो
तब जब ये सैलाब उठेगा
जब भारत का भाग्य बदलेगा
तब तुमको साहित्य के सच्चे प्रहरी
हर हिन्दुस्तानी ह्रदय कहेगा
साहित्य के नाम पर फैल रहा,
कैसा ये संबाद है
सहनशीलता घटती जा रही
कर रहे प्रलाप है
है शब्दों कि रक्षा जिनके हातों
कर रहै वही अवसाद है
जिसने उनको ये मान दिया
और जिसने ये सम्मान किया
उस साहित्य को सोचो उन्होने
कैसे ये बदनाम किया
कैसा ये विषाद है
और कैसा ये शय-मात है
साहित्य सा राजा हार रहा
संतरी ये लेखक अज्ञात है
कहते हैं दादरि कि घटना से
भारत जग में बदनाम हुई
कलबुर्गी - दाबोलकर के हत्या से
लेखन कि आजादी हार गयी
पर सोचो पहले भी तो यहाँ
तसलीमा “मुन्नी” सि बदनाम हुई
हाँ समझौता और गोधरा घटा
और बाबरी में घमासान हुई
सिखों का कत्ले आम हुआ
कश्मीर में पण्डितों कि जान गयी
क्या घोटालों से भारत जग में
कभी नहीं बदनाम हुई?
तब कहाँ थी तुम्हारी चेतना
क्योँ ना तब प्रतिवाद किया
लौटाना ही था सम्मान तो फिर
क्योँ इसको स्वीकार किया?
मैं छोटा सा लेखक मुझको
साहित्य का तो ज्ञान नहीं
पर मुझको भी यह दीख रहा
साहित्य का ये तो सम्मान नहीं
पर तुम तो हो साहित्य के प्रहरी
तुमने कैसे ये मान लिया?
लौटा दिया सम्मान जो तुमने
क्या आजादी तुमने जान लिया?
झुठा ये विवाद छोडो
शब्दों को शब्दों से जोडो
प्रतिवाद है जो तुमको करना
कलम से जनता को झंझोरो
तब जब ये सैलाब उठेगा
जब भारत का भाग्य बदलेगा
तब तुमको साहित्य के सच्चे प्रहरी
हर हिन्दुस्तानी ह्रदय कहेगा
Excellent... Heart-warming... Congratulations!
ReplyDeleteThank you..:)
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